Sunday, 12 July 2009

१०.०७ को सुबह अख़बार उठाया,तो मुखपृष्ठ पे जो ख़बर पढ़ी,दंग रह गई ...ख़बर थी की एक सवा दो वर्ष का मासूम स्कूल में पूल में डूब कर मर गया ........बेहद र्हिदय विदारक घटना थी ये ...पूरे शहर के लोगो की सहानुभूति उस बच्चे के माता-पिता के साथ है ,जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को खो दिया ...किंतु ये सवाल सभी के मन में कौंध रहा है की उस मासूम की क्या उम्र थी अभी स्कूल जाने की?आख़िर क्यो माता-पिता उस भेढ़ चाल में शामिल हो जाते है जो आज के युवा अभिभावकों ने बना ली है .क्या बच्चे घर में रह कर वो सब नही सीख सकते,जो इन तथा कथित प्रीनार्सरीस्कूलों में पढाया जाता है?आखिर क्यो इतनी छोटी सी उम्र में बच्चो को अनुशासन में रहने को मजबूर किया जाता है?वो भी अपने ही माता-पिता के द्वारा?मेरा आशय उस बच्चे के माता-पिता को चोट पहुचाना
नही है,अपितु सिर्फ़ इस पर विचार करने का है की इतनी छोटी सी उम्र में बच्चो को स्कूल भेजना उचित है?उनका मासूम बचपन छीन लेना उचित है?उनके नाजुक कंधो पर बैग का बोझ लाद देना उचित है?यहाँ आगरा शहर में ये बहस छिड चुकी है .....आप की क्या राय है हम अवश्य जानना चाहेंगे........इति

2 comments:

  1. In accidents se ager hamari aakhen nahi khulti hai .to kisi ka koi doos nahi hai. samay samay per ghatne wali in ghatnao per ager log dyan nahi dete to aise hi parinam samne aate hai.

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  2. bilkul sahi kaha deepa......log us samay to apni rai dete hai par kuch samay baad hi sab bhool jaate hai....tabhi aisi ghatnaaye ghat hi jaati hai

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